Saturday, 31 December 2011

आग सीने में

आग    सीने    में    ज़रा   सी  तो  जला ली जाए |
चाहे     दो    घूँट    सही  मुँह  से  लगा  ली  जाए ||

आओ     ख़ैरात   किसी    मैक़दे    में    बांटे हम |
क्यूँ   न  प्यासे  सभी  रिन्दों   की दुआ ली जाए ||

शायरों    की   नयी   नस्लों   को बुला कर उनसे |
साल    आया   नया   तो   बज़्म सजा ली  जाए ||

आज      लबरेज़      रहेंगे      सभी   के   पैमाने |
हाथ   इस   दर  से  किसी का भी न ख़ाली जाए ||

रोज़   घर    में    पिए    माँ -बाप से डरते -डरते |
मैक़दे   में  किसी   अब  चल  के हवा  ली  जाए ||

होश   बाक़ी  न  रहे    आज   तो   पीलो  इतनी |
कह   के    साक़ी  से  थोड़ी  और मंगा ली जाए ||

ज़हर जो पी गए हैं   आज   किसी  साज़िश   में |
पीने   वालों  की   चलों  जान     बचा  ली  जाए ||

मिलनी मुश्किल है जगह जब कहीं भी पीने की |
रोज़  महफ़िल  मेरे  घर  में  ही  बुला  ली  जाए ||

ठीक हो जाओगे  एकदम  दम  से  पीजिये  दारू |
पेश्तर    इससे     कोई    और    दवा    ली  जाए||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

   

No comments:

Post a Comment