आग सीने में ज़रा सी तो जला ली जाए |
चाहे दो घूँट सही मुँह से लगा ली जाए ||
आओ ख़ैरात किसी मैक़दे में बांटे हम |
क्यूँ न प्यासे सभी रिन्दों की दुआ ली जाए ||
शायरों की नयी नस्लों को बुला कर उनसे |
साल आया नया तो बज़्म सजा ली जाए ||
आज लबरेज़ रहेंगे सभी के पैमाने |
हाथ इस दर से किसी का भी न ख़ाली जाए ||
रोज़ घर में पिए माँ -बाप से डरते -डरते |
मैक़दे में किसी अब चल के हवा ली जाए ||
होश बाक़ी न रहे आज तो पीलो इतनी |
कह के साक़ी से थोड़ी और मंगा ली जाए ||
ज़हर जो पी गए हैं आज किसी साज़िश में |
पीने वालों की चलों जान बचा ली जाए ||
मिलनी मुश्किल है जगह जब कहीं भी पीने की |
रोज़ महफ़िल मेरे घर में ही बुला ली जाए ||
ठीक हो जाओगे एकदम दम से पीजिये दारू |
पेश्तर इससे कोई और दवा ली जाए||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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