सज कर न निकलो महकते गुलाब की तरह |
लोगों की नज़रें हैं किसी उक़ाब की तरह ||
घोड़े पे वो चढ़े किसी नवाब की तरह |
पैरों में मैं मगर रहा रिकाब की तरह ||
तूने दिया जो आशिक़ी में आज तक मुझे |
वो ग़म सजा के रक्खा है ख़िताब की तरह ||
तुम ही न पढ़ सके तो ये तुम्हारी है कमी |
दिल तो मेरा रहा खुली किताब की तरह ||
पहले मुझे उठा के यूँ फ़लक़ पे रख दिया |
अब क्यूँ गिरा दिया मुझे शिहाब की तरह ?
झटका के ज़ुल्फ़ चल दिए अजीब शान से |
बरसात का दिया मज़ा सहाब की तरह ||
आँखों में अश्क आ गए हमारी जब कभी |
हम पी गए उन्हें तभी शराब की तरह ||
गाहे -ब -गाहे जो मिलन हुआ था आपसे |
क्या ख़ूब वो रहा किसी सवाब की तरह ||
दिल में ही जिसके रह गईं अनेक हसरतें |
मेरा वुजूद है उसी हुबाब की तरह ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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