Sunday, 25 December 2011

सज कर न निकलो


सज कर न निकलो महकते गुलाब की तरह |
लोगों  की  नज़रें हैं किसी  उक़ाब  की  तरह ||

घोड़े   पे   वो  चढ़े  किसी  नवाब  की  तरह |
पैरों  में  मैं  मगर   रहा  रिकाब  की  तरह || 

तूने दिया जो आशिक़ी में आज  तक  मुझे |
वो ग़म सजा के रक्खा है ख़िताब की  तरह ||  

तुम ही न पढ़ सके तो ये तुम्हारी  है  कमी |
दिल तो मेरा रहा  खुली  किताब की  तरह || 

पहले मुझे उठा के यूँ फ़लक़   पे  रख  दिया |
अब क्यूँ गिरा दिया मुझे  शिहाब की  तरह ?

झटका के ज़ुल्फ़ चल दिए अजीब शान  से |
बरसात  का  दिया  मज़ा  सहाब की  तरह ||  

आँखों में अश्क आ गए हमारी  जब  कभी |
हम  पी  गए  उन्हें  तभी  शराब की  तरह || 

गाहे -ब -गाहे जो मिलन हुआ था  आपसे |
क्या ख़ूब वो रहा किसी  सवाब की  तरह || 

दिल में ही जिसके रह गईं अनेक हसरतें |
मेरा   वुजूद   है   उसी   हुबाब  की  तरह ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 


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