Saturday, 31 December 2011

आग सीने में

आग    सीने    में    ज़रा   सी  तो  जला ली जाए |
चाहे     दो    घूँट    सही  मुँह  से  लगा  ली  जाए ||

आओ     ख़ैरात   किसी    मैक़दे    में    बांटे हम |
क्यूँ   न  प्यासे  सभी  रिन्दों   की दुआ ली जाए ||

शायरों    की   नयी   नस्लों   को बुला कर उनसे |
साल    आया   नया   तो   बज़्म सजा ली  जाए ||

आज      लबरेज़      रहेंगे      सभी   के   पैमाने |
हाथ   इस   दर  से  किसी का भी न ख़ाली जाए ||

रोज़   घर    में    पिए    माँ -बाप से डरते -डरते |
मैक़दे   में  किसी   अब  चल  के हवा  ली  जाए ||

होश   बाक़ी  न  रहे    आज   तो   पीलो  इतनी |
कह   के    साक़ी  से  थोड़ी  और मंगा ली जाए ||

ज़हर जो पी गए हैं   आज   किसी  साज़िश   में |
पीने   वालों  की   चलों  जान     बचा  ली  जाए ||

मिलनी मुश्किल है जगह जब कहीं भी पीने की |
रोज़  महफ़िल  मेरे  घर  में  ही  बुला  ली  जाए ||

ठीक हो जाओगे  एकदम  दम  से  पीजिये  दारू |
पेश्तर    इससे     कोई    और    दवा    ली  जाए||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

   

Tuesday, 27 December 2011

मेरे आँसूं


मेरे       आँसूं     बहने      दो |
ग़म    को    हल्का  होने  दो ||

राहें     हैं      मेरी      आसान |
उन    पर   कांटे   उगने    दो ||

अपनी अदब की महफ़िल में |
मुझको  भी  कुछ  कहने  दो ||

फिर  से  सूरज    निकलेगा |
काले   बादल   छँटने      दो ||

कुछ   तो   हस्ती  है   मेरी |
जैसा   भी   हूँ    रहने    दो ||

जल्दी  क्या  है  जाने  की |
बारिश तो रुक   जाने  दो ||

बू  -ए -ग़ुलामी  हैं  इनमें |
इन महलों को  ढहने  दो ||

उसकी नफ़रत का लावा |
दिल से बाहर  आने   दो ||

जांचों परखों सपनों को |
फिर साँचे  में ढलने दो ||

प्यारे  से  मासूमों   को |
तो  मनमानी करने दो ||

सिजद:करने  से पहले |
थोड़ा तो सर झुकने दो ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Sunday, 25 December 2011

सज कर न निकलो


सज कर न निकलो महकते गुलाब की तरह |
लोगों  की  नज़रें हैं किसी  उक़ाब  की  तरह ||

घोड़े   पे   वो  चढ़े  किसी  नवाब  की  तरह |
पैरों  में  मैं  मगर   रहा  रिकाब  की  तरह || 

तूने दिया जो आशिक़ी में आज  तक  मुझे |
वो ग़म सजा के रक्खा है ख़िताब की  तरह ||  

तुम ही न पढ़ सके तो ये तुम्हारी  है  कमी |
दिल तो मेरा रहा  खुली  किताब की  तरह || 

पहले मुझे उठा के यूँ फ़लक़   पे  रख  दिया |
अब क्यूँ गिरा दिया मुझे  शिहाब की  तरह ?

झटका के ज़ुल्फ़ चल दिए अजीब शान  से |
बरसात  का  दिया  मज़ा  सहाब की  तरह ||  

आँखों में अश्क आ गए हमारी  जब  कभी |
हम  पी  गए  उन्हें  तभी  शराब की  तरह || 

गाहे -ब -गाहे जो मिलन हुआ था  आपसे |
क्या ख़ूब वो रहा किसी  सवाब की  तरह || 

दिल में ही जिसके रह गईं अनेक हसरतें |
मेरा   वुजूद   है   उसी   हुबाब  की  तरह ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 


Thursday, 22 December 2011

उनसे जब - जब


उनसे  जब - जब  हुआ  सामना |
दिल को मुश्किल हुआ  थामना ||

पहले      गहराईयाँ      नापना |
उनकी आँखों  में फिर झाँकना ||

उन  सा   कोई   जहाँ   में  नहीं |
ये   सभी   को   पडा    मानना ||

दाग़  मुँह  के  नुमाया   न  हों |
काश   एसा   मिले    आईना ||

यह भी शामिल अदाओं में हैं |
उनका हर बात  को  टालना ||

कुछ भी कहने से पहले ज़रा |
ख़ुद   गरेबान   में   झाँकना  ||

सब को ले बैठता   एक  दिन |
बेवज़ह     टेंशन       पालना ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Wednesday, 21 December 2011

कुछ भी कह दो


कुछ  भी  कह  दो  वही  सही |
जो  भी  सुन  लो  वही  सही || 

मतलब की जब नहीं समझ |
जैसा    समझो   वही   सही ||  

माथा  पच्ची  करो  न  यार |
सब  कहते   जो वही  सही ||   

हम  कुछ  बोले  सही  नहीं |
तुम  जो  बोलो  वही  सही ||   

जिसकी की है मुख़ालिफ़त |
फिर  भी  है  तो वही  सही ||  

हमने   माना   सही   वही |
तुम भी  मानो वही  सही ||  

उसने सब पे किया असर |
जिससे  पूछो  वही  सही || 
  
मैंने  कैसी  कही  ग़ज़ल |
जो  बतलाओ वही सही ||  

अपना -अपना नसीब है |
जैसा  भी  हो वही  सही ||
  
डा०  सुरेन्द्र  सैनी