Sunday, 5 February 2012

आजा कि तेरी



आजा कि  तेरी  दीद को  दिल   बेक़रार  है |

तेरी  वफ़ा  पे  मुझ   को   बड़ा   एतबार  है || 

मुझ  को  तो  इंतज़ार  रहेगा   तमाम  रात |

तू   आये   न   आये   तुझे   इख़तियार   है || 

उसकी खुशी के वास्ते सब   कुछ लुटा दिया |

उसकी  खुशी में मुझ को  खुशी  बेशुमार  है || 

तन्हाइयों   में  भी   कभी   तनहा  नहीं  रहा |

यादें हैं  उनकी   साथ   दिल -ए -बेक़रार  है || 

बोझिल सी पलकें हो गयीं साक़ी पिए बग़ैर |

कैसा    ख़ुमार   है   अरे   कैसा    ख़ुमार है ||
 

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


Monday, 30 January 2012

खोखला रिश्ता है


खोखला रिश्ता है इसको   तोड़   दो |
हाल पर मुझको मेरे अब  छोड़  दो ||

ख़ुद करो ग़लती तो  ये जायज़  नहीं |
ठींकरा   औरों   के  सर  पे  फोड़  दो ||

लफ्ज़ जो लिखते हों बस अलगाव के |
एसे   क़लमों  को  उठा  कर  तोड़  दो ||

चार   होते      हैं  फ़क़त  दो  और  दो |
चाहे  उनको  जिस  तरह से जोड़  दो ||

बाद मुद्दत  के उठे  दिल  में  ख़याल |
ख़ूबसूरत  सा   इन्हें  इक   मोड़  दो ||

दिल का शायर फिर जगायेगा तुम्हे |
अब भले ही  आप  कहना  छोड़  दो ||

हादिसों ने सख्त की दिल की ज़मीन |
खुश  ख़यालों  से  इसे  अब  गोड़  दो ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Sunday, 15 January 2012

जगा अन्दर मेरे


जगा   अन्दर   मेरे  शायर अदीब अहिस्ता -आहिस्ता |
बना  लोगों  का मैं भी अब हबीब अहिस्ता -आहिस्ता ||

शज़र  मेहनत  का  तेरी  एक दिन ये  ख़ूब  फल  देगा |
यक़ीनन  इसमें  फूटेंगी  क़ज़ीब  अहिस्ता -आहिस्ता ||

ख़तीब  आया  था  सरकारी  गया वो आज ये कह कर |
बदल जाएगा अब सबका नसीब अहिस्ता -आहिस्ता || 

रिटायरमेंट   का    पैसा   लिए   मैं  आज  घर  पहुँचा |
बहू -बेटा   लगे   आने    क़रीब   अहिस्ता -आहिस्ता ||  

हुआ  जब -जब  भी  बटवारा  मेरे  चालाक  साझी  ने |
मेरी ही सिम्त खिसकाई  ज़रीब अहिस्ता -आहिस्ता || 

सियासत किस तरह से उसका इस्तअमाल करती है |
समझता जा रहा अब हर ग़रीब  अहिस्ता -आहिस्ता || 

मरीज़ -ए -इश्क है ज़ालिम ये हद्द दर्ज़े का नुक़ताचीं  |
तुनक  कर जा रहे  सारे  तबीब अहिस्ता -आहिस्ता ||  

डा०  सुरेन्द्र  सैनी  

Tuesday, 10 January 2012

अक्सर अच्छों में


अक्सर  अच्छों  में  भी   ज़ेर  निकलते  हैं |
मीठों  के   संग   खट्टे   बेर   निकलते  हैं ||

कहते  जाओ  दिल  के  आप  ख़्यालों  को |
इन में से ही  दिलकश  शेर   निकलते  हैं || 

उन गलियों में राहत बाँट के  क्या  होगा ?
जिन में सब के सब ही सेर  निकलते  हैं || 

डर  जाए  अक्सर   चालाक  शिकारी  भी |
जब जंगल में तन कर  शेर  निकलते  हैं || 

महफ़िल में इज़्ज़त अफज़ाई ज़ियादा हो |
सब  ही  घर  से  करके  देर  निकलते  हैं ||

शायर  के  घर जब - जब पड़े कोई छापा |
रद्दी   काग़ज़  के   ही   ढेर   निकलते   हैं ||

सुनते  हैं  मिलती  तस्कीन  ज़ियारत से |
हम भी बस कल ही अजमेर निकलते हैं || 

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 5 January 2012

सोच कर बैठता हूँ


सोच   कर   बैठता   हूँ   कि   अच्छा  कहूँ |
बैठ  कर  सोचता  हूँ  कि  अब  क्या  कहूँ ?

जब  ख़यालों  में  बस  छा गया तू  ही  तू |
बोल क्या तुझको जान -ए -तमन्ना कहूँ ?

लब    सभी    के   उसे   गुनगुनाते   रहें |
चाहता    हूँ     कोई    गीत    एसा   कहूँ ||

लोग कहते हैं  रंग -ए -तगज्ज़ुल   कहो |
दिल मगर ये कहे हाल -ए -दुन्या  कहूँ ||

हाल  सबका    गरानी   में   एसा  हुआ |
किसको ज़िन्दां कहूँ किसको मुर्दा कहूँ ?

इश्क़ के भी अलावा हैं कितने ही काम |
आप  सुनते  नहीं  और  कितना  कहूँ ?

तू     परेशान     है    मैं    परेशान    हूँ |
हाल   तेरा   सुनू या  कि  अपना  कहूँ ?

डा० सुरेन्द्र  सैनी     

Monday, 2 January 2012

जब फ़ुर्सत में


जब   फ़ुर्सत   में   हुआ    करो |
तब  ही  मुझसे  से मिला करो ||

मुश्किल    मेरे    लिए    खड़ी |
ज़िद  करके  मत  किया करो ||

कह    लेता    हूँ   कभी - कभी |
मेरी     ग़ज़लें     पढ़ा      करो ||

गुंच:    गुंच:    महक         उठे |
यूँ    दामन    से   हवा     करो ||

कल  का  तो  कुछ  पता  नहीं |
इक - इक पल को जिया करो ||

इतने    टाईट   लिबास    में |
धीरे -धीरे      चला       करो ||

हम    भी   हँसते  रहा  करें |
तुम   भी  हँसते  रहा  करो ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी   

Saturday, 31 December 2011

आग सीने में

आग    सीने    में    ज़रा   सी  तो  जला ली जाए |
चाहे     दो    घूँट    सही  मुँह  से  लगा  ली  जाए ||

आओ     ख़ैरात   किसी    मैक़दे    में    बांटे हम |
क्यूँ   न  प्यासे  सभी  रिन्दों   की दुआ ली जाए ||

शायरों    की   नयी   नस्लों   को बुला कर उनसे |
साल    आया   नया   तो   बज़्म सजा ली  जाए ||

आज      लबरेज़      रहेंगे      सभी   के   पैमाने |
हाथ   इस   दर  से  किसी का भी न ख़ाली जाए ||

रोज़   घर    में    पिए    माँ -बाप से डरते -डरते |
मैक़दे   में  किसी   अब  चल  के हवा  ली  जाए ||

होश   बाक़ी  न  रहे    आज   तो   पीलो  इतनी |
कह   के    साक़ी  से  थोड़ी  और मंगा ली जाए ||

ज़हर जो पी गए हैं   आज   किसी  साज़िश   में |
पीने   वालों  की   चलों  जान     बचा  ली  जाए ||

मिलनी मुश्किल है जगह जब कहीं भी पीने की |
रोज़  महफ़िल  मेरे  घर  में  ही  बुला  ली  जाए ||

ठीक हो जाओगे  एकदम  दम  से  पीजिये  दारू |
पेश्तर    इससे     कोई    और    दवा    ली  जाए||

डा० सुरेन्द्र  सैनी