Thursday, 5 January 2012

सोच कर बैठता हूँ


सोच   कर   बैठता   हूँ   कि   अच्छा  कहूँ |
बैठ  कर  सोचता  हूँ  कि  अब  क्या  कहूँ ?

जब  ख़यालों  में  बस  छा गया तू  ही  तू |
बोल क्या तुझको जान -ए -तमन्ना कहूँ ?

लब    सभी    के   उसे   गुनगुनाते   रहें |
चाहता    हूँ     कोई    गीत    एसा   कहूँ ||

लोग कहते हैं  रंग -ए -तगज्ज़ुल   कहो |
दिल मगर ये कहे हाल -ए -दुन्या  कहूँ ||

हाल  सबका    गरानी   में   एसा  हुआ |
किसको ज़िन्दां कहूँ किसको मुर्दा कहूँ ?

इश्क़ के भी अलावा हैं कितने ही काम |
आप  सुनते  नहीं  और  कितना  कहूँ ?

तू     परेशान     है    मैं    परेशान    हूँ |
हाल   तेरा   सुनू या  कि  अपना  कहूँ ?

डा० सुरेन्द्र  सैनी     

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