अक्सर अच्छों में भी ज़ेर निकलते हैं |
मीठों के संग खट्टे बेर निकलते हैं ||
कहते जाओ दिल के आप ख़्यालों को |
इन में से ही दिलकश शेर निकलते हैं ||
उन गलियों में राहत बाँट के क्या होगा ?
जिन में सब के सब ही सेर निकलते हैं ||
डर जाए अक्सर चालाक शिकारी भी |
जब जंगल में तन कर शेर निकलते हैं ||
महफ़िल में इज़्ज़त अफज़ाई ज़ियादा हो |
सब ही घर से करके देर निकलते हैं ||
शायर के घर जब - जब पड़े कोई छापा |
रद्दी काग़ज़ के ही ढेर निकलते हैं ||
सुनते हैं मिलती तस्कीन ज़ियारत से |
हम भी बस कल ही अजमेर निकलते हैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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